काव्यकर्ता: साक्षी
चित्ररचेता: स्वर्गीय टी आर वराहमूर्ति
मोहन अभी न आनादर्शन मुझे न देना
जब तक न बन सकूँ मैं
अर्जुन सखा तुम्हारा
मोहन अभी न आना....
मन के विकार कौरव !
बन के खड़े हैं योद्धा !!
पढ़ वेद ग्रंथ सारे!
कहला रहे प्रबोधा!!
जी चाहता सभी को!
मै जीत कर दिखाऊँ!!
विश्वास बल भुजा पर!
इक नाम का सहारा!!!
मोहन अभी न आना .....
ठहरो ज़रा मुरारी!
रथ मै बना रहा हूं!!
धीरज व शूरता के पहिये!
लगा रहा हूं!!
जिन पर लपेटे दम की!
हैं शेषनाग जैसी!
बजरंग ॐ नारा !!
मोहन अभी न ....
दया विनम्रता है मेरे!
रेशम लगाम डोरे!
क्षमा याचना प्रेम भक्ति!
हैं शवेत अश्व घोड़े !!
रथ ब्रह्म रूप न्यारा!!
मोहन अभी न......
No comments:
Post a Comment